Anant Singh (अनंत सिंह): आँखों पर काला चश्मा, मूंछों पर ताव और रौबदार व्यक्तित्व. कभी कहा जाता था कि बिहार में इस शख्स की समानांतर सरकार चलती है. बात चुनावी जंग की हो तो सामने प्रतिद्वंदी कौन है, न तो इससे फर्क पड़ता है और ना ही इस बात से कि विरोध में प्रचार करने कौन नेता आया.

Anant Singh (अनंत सिंह)

इस नेता ने जनता की नब्ज कुछ इस तरह से थाम रखी है कि जीत उसी के हिस्से आती है. एक, दो, तीन या चार नहीं, छह बार ऐसा हो भी चुका है. जी हां, हम बात कर रहे हैं सियासी गलियारों में मोकामा के डॉन और आम जन में छोटे सरकार के नाम से प्रसिद्ध अनंत सिंह की.

बाढ़ के लदमा गांव निवासी अनंत सिंह की चर्चा इस समय इसलिए हो रही है क्योंकि मोकामा विधानसभा सीट पर एकबार फिर अनंत सिंह की चली है. हालांकि, इस बार चुनाव मैदान में अनंत सिंह खुद नहीं थे. अनंत सिंह को आर्म्स एक्ट के मामले में सजा सुनाए जाने के बाद उनकी विधानसभा की सदस्यता रद्द हो गई थी. अनंत सिंह की विधायकी रद्द होने के बाद रिक्त हुई

मोकामा सीट पर उपचुनाव हुए जिसमें उनकी पत्नी नीलम देवी विजयी रही हैं.

अनंत सिंह के हाथ में मोकामा सीट छठी बार आई है. मोकामा में अनंत सिंह का रुतबा ऐसा है कि यहां किसी दल या बड़े नेता की नहीं, छोटे सरकार की चलती है. नीतीश कुमार, लालू यादव के साथ ही तमाम बड़े नेताओं के, बड़े राजनीतिक दलों के सारे समीकरण ध्वस्त हो जाते हैं और जीत अनंत सिंह के ही हिस्से आती है. ऐसा हम नहीं, आंकड़े कह रहे हैं.

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दूरी में बदल गई थी नीतीश से करीबी

बात साल 2015 के विधानसभा चुनाव की है. बिहार की सियासत की दो धुर विरोधी पार्टियां राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और जनता दल यूनाइटे (जेडीयू) एकसाथ गठबंधन कर चुनाव लड़ रही थीं. लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार एक मंच से चुनाव प्रचार कर रहे थे. मोदी लहर में विजय रथ पर सवार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने भी चुनावी जंग में पूरा जोर लगा दिया था. नीतीश कुमार ने 2010 का चुनाव जेडीयू से जीते अनंत सिंह का टिकट काट दिया था.

इससे पहले, अनंत सिंह को पुलिस ने एक मामले में जेल भेज दिया था जिसके बाद नीतीश कुमार और छोटे सरकार के बीच नजदीकियों के दूरियों में तब्दील होने की चर्चा आम हो गई थी. चर्चा ये भी थी कि अनंत सिंह को तब उनके धुर विरोधी रहे लालू यादव के कहने पर गठबंधन सरकार की मजबूरियों के कारण जेल भेज दिया. नीतीश की पार्टी ने जब उम्मीदवारों का ऐलान किया तब उसमें मोकामा सीट से अनंत सिंह की जगह दूसरे नाम ने नीतीश-अनंत के बीच दूरी बढ़ने की अटकलों को बल दे दिया.

2015 में ध्वस्त कर दिए थे लालू-नीतीश के समीकरण

अनंत सिंह ने जेडीयू से टिकट कटने के बाद जेल से ही चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. अनंत सिंह के परिजनों और करीबियों ने चुनाव प्रचार की कमान संभाली और सामने थी जेडीयू-आरजेडी के सत्ताधारी महागठबंधन की चुनौती. नीतीश कुमार और लालू यादव जैसे सियासत के मंझे खिलाड़ी जिन्होंने मोकामा जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी.

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बड़ी पार्टियां, बड़े गठबंधन, बड़े-बड़े नेता और तमाम राजनीतिक समीकरण, सभी चुनौतियों के बावजूद एक भी दिन प्रचार किए बगैर अनंत सिंह ने विजय गाथा लिख दी. तमाम सियासी दांव-पेंच आजमाए गए लेकिन जब नतीजे आए तो सारी कवायद फेल हो चुकी थी.

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मोकामा की जनता ने सबकुछ नकार कर अपने छोटे सरकार पर भरोसा जताया था. मोकामा सीट से अनंत सिंह की बतौर निर्दलीय इस जीत ने एक नेता के तौर पर उनकी छवि को और मजबूत कर दिया. इस चुनााव के बाद लालू-नीतीश की जोड़ी टूट गई थी और जेडीयू ने बीजेपी से सरकार बना ली लेकिन अनंत सिंह और नीतीश के बीच की खाई जस की तस रही. कभी अपने दुलारे रहे अनंत सिंह से सुशासन बाबू ने दूरी बनाए रखी. अनंत सिंह भी जेल से अंदर-बाहर होते रहे.

2020 में आरजेडी के टिकट पर विधायक बने थे अनंत

कहते हैं सियासत में कोई किसी का स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता. अनंत सिंह के सियासी सफर की कहानी भी कुछ ऐसी ही रही. जिन नीतीश कुमार को उन्होंने कभी चांदी के सिक्कों से तौला था, जिन नीतीश के लिए कभी वे सबसे खास थे, उन्हीं नीतीश को अब वे फूटी आंख नहीं सुहा रहे थे.

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जो लालू यादव, अनंत सिंह के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे, उनकी ही पार्टी आरजेडी अब बदलते समीकरणों में दूरियां पाट रही थी. जेडीयू से गठबंधन टूटने के बाद 2020 के चुनाव में लालू की पार्टी आरजेडी ने अनंत सिंह को टिकट दे दिया. अनंत सिंह ने फिर से ये साबित किया कि वे किसी भी दल या निर्दल चुनाव मैदान में उतरें, जीत उन्हीं को मिलनी है.

अनंत सिंह पांचवी बार जीते और फिर 2019 में घर से मिली एके-47 और बम मिलने के मामले में सजा सुनाए जाने के बाद विधानसभा की सदस्यता गंवाई तो पत्नी को विधायक बनाने में सफल रहे. अनंत सिंह की विधायकी जाने के बाद रिक्त हुई मोकामा सीट से उपचुनाव में अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी ने एक अन्य बाहुबली ललन सिंह की पत्नी सोनम देवी को पटखनी देकर कब्जा बरकरार रखा.

अनंत सिंह के सियासी वर्चस्व के पीछे क्या है वजह

मोकामा उपचुनाव में अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी की जीत के बाद ये चर्चा शुरू हो गई है कि आखिर ऐसा क्या खास है कि मोकामा और अनंत सिंह एक-दूसरे के पर्याय बने हुए हैं? ऐसा क्या खास है अनंत सिंह के व्यक्तित्व में जो मोकामा की जनता को नीतीश, लालू या कोई और नेता, दल नहीं केवल और केवल छोटे सरकार नजर आते हैं.

इसके पीछे दो वजहों की चर्चा है. कोई मोकामा सीट के चुनावी अतीत की बात करते हुए दावा कर रहा है कि यहां से भूमिहार जाति के नेता ही विधानसभा पहुंचते रहे हैं. लेकिन कुछ लोग इसे खारिज करते हुए ये तर्क दे रहे हैं कि अनंत सिंह के सामने भूमिहार जाति के स्थानीय दिग्गज भी किस्मत आजमाते रहे हैं लेकिन फिर भी जीत छोटे सरकार के ही हिस्से आई.

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मोकामा सीट पर अनंत सिंह की एक के बाद एक जीत के लिए लोग उनकी रॉबिनहुड छवि को श्रेय देते हैं. मोकामा के अखिलेश कुमार बताते हैं कि बाहरी लोगों के लिए अनंत सिंह चाहे अपराधी, बाहुबली या कुछ भी हों लेकिन इलाके के लोगों के लिए तो वे छोटे सरकार हैं.

वे कहते हैं कि किसी की लड़की की शादी में दहेज की बाधा आ रही हो या अन्य किसी तरह की समस्या, छोटे सरकार के दर पर जो भी अपनी समस्या लेकर गया वह खाली हाथ नहीं लौटा. अगर किसी ने शादी का निमंत्रण पत्र अनंत सिंह को भेजा तो उसके यहां भले ही छोटे सरकार खुद नहीं पहुंच पाएं लेकिन उनका उपहार जरूर पहुंचता है.

मोकामा में अनंत सिंह के सियासी वर्चस्व की जीत

मोकामा सीट के उपचुनाव नतीजों पर सियासी दलों में मंथन होंगे, लंबी बैठकें होंगी, आरजेडी को जीत का श्रेय दिया जाएगा. ऐसा होने भी लगा है लेकिन बिहार की राजनीति को करीब से देखने, जानने और समझने वाले यही कह रहे हैं कि ये जीत ना तो आरजेडी की है और ना ही बीजेपी की हार, ये जीत मोकामा में अनंत सिंह के सियासी वर्चस्व की है.

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