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क्या आप जानते हैं ज़मीन में खाता कितने प्रकार के होते हैं?

आइये जानते हैं की जमीन में कितने प्रकार के खाता होते हैं...
रैयतवाड़ी व्यवस्था के अंतर्गत किसान अपने खेत का स्थायी रूप से मालिक रहता था। पैतृक संमति के रूप में भूमि उसके उत्तराधिकारियों को मिल जाती थी। उसे अपनी भूमि को बेचने अथवा हस्तांरित करने का भी अधिकर था।
सिकमी जमीन रैयत द्वारा मालगुजारी के तहत प्रदान की जाती है। इस जमीन पर मालगुज प्राप्त व्यक्ति पूरे जीवन इसका उपयोग मालगुजारी के लिए कर सकता है। इस जमीन की खरीद-बिक्री नहीं की जा सकती। जमीन पर मालिकाना हक रैयतधारी का होता है।
गैरमजरूआ आम पूर्ण रूप से सरकारी रास्ता, पहाड़ या सैरात होती है। इसकी खरीद-बिक्री नहीं हो सकती। गैरमजुरआ आम सरकारी जमीन होता तथा इसके खरीद-बिक्री पर रोक है।
गैरमजरूआ खास के तहत गैरमजरूआ मालिक प्रकृति की जमीन भी आती है। इसकी खरीद-बिक्री हो सकती है, लेकिन सिर्फ उसी जमीन की, जो सरकार की प्रतिबंधित सूची में दर्ज नहीं है और संबधित जमीन की जमाबंदी कायम है।
भारत सरकार की जमीन भारत सरकार की केसर-ए-हिंद जमीन जिसे केंद्र व राज्य सरकार को सुरक्षित रखना है।
जमींदार कुछ ऐसी जमीन रखते थे जिसपर मेला या हाट लगाया जाता था या फिर खाली रखा जाता था। इसकी बिक्री नहीं हो सकती। यह लीज पर दी जाती है। इसे भी सरकारी जमीन माना जाता हैं।
वह भूमि जो पशुओं के चरने के लिए खाली छोड़ दी गई हो। इसप्रकार लोगो ने मवेशियों के लिये करीब 3.5 करोड़ एकड़ जमीन उपलब्ध करा दिये थे।
जिला परिषद भूमि जिला परिषद के लिए आरक्षित रहता है। इसका उपयोग जिला परिषद फंड से बनने वाले भवन आदि में किया जाता है। ये सरकारी जमीन होता है। इसे बेचा-खरीदा नहीं जा सकता है।
म्युनसिपलिटि भी के प्रकार का खाता का प्रकार है। ये सरकारी जमीन होता है। इस जमीन पर नगर परिषद का अधिकार होता है। नगर परिषद को इस जमीन पर जरूरी संरचना करने के लिए आरक्षित रहता है।
रैलवे भी के प्रकार का भूमि का खाता होता है। रैलवे भूमि सरकारी जमीन होता है। ये जमीन पहले किसान का था लेकिन बाद में सरकार इसे उचित मूल्य पर खरीद लिया। ये जमीन रेलवे के उपयोग के लिए आरक्षित है।
वन भूमि एक भूमि का प्रकार है। यह जंगल, वन आदि के लिए आरक्षित रहता है। ये बड़े बड़े जमींदार का था। बाद में इसको काट कर घर आदि बनाया गया।
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