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स्वामी सहजानंद सरस्वती के 134वें जयंती पर भूमिहार ब्राह्मण एकता मंच कर रही भव्य कार्यक्रम, 24 फरबरी को पटना चलें

स्वामी सहजानंद सरस्वती के 134वें जयंती पर आशुतोष कुमार के नेतृत्व में भूमिहार ब्राह्मण एकता मंच फाउंडेशन के तत्वाधान में आगामी 24 फरबरी को पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हाॅल में भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। आयोजन में हजारों लोगों के आने का कयास लगाया जा रहा है।

बिहार समेत अन्य राज्यों के सभी जिले में इसको लेकर आमंत्रण पत्र बाँटा जा रहा है। इस मौके पर गुंजन सिंह, धीरज कांत, राजीव सिंह समेत कई प्रसिद्ध संगीतकार उपस्थित रहेगा। वहीं इस कार्यक्रम में कई प्रसिद्ध नेता, समाजसेवी, उद्योगपति आदि भी मौजूद रहेंगे। आशुतोष कुमार के नेतृत्व में आयोजित इस कार्यक्रम में किसानों की बात खुलकर की जायेगी।

स्वामी सहजानंद सरस्वती के 134वें जयंती पर भूमिहार ब्राह्मण एकता मंच कर रही भव्य कार्यक्रम, 24 फरबरी को पटना चलें

वहीं आशुतोष कुमार ने इस कार्यक्रम का सूचना देते हुए कहा की इस कार्यक्रम का उद्देश्य किसी दल या राजनीति से नही है। उन्होंने दलगत, जातिगत बंधन से उपर इसे सामाजिक कार्यक्रम बताया। वे सभी पार्टी, जाती, वर्ग, समुदाय के लोगों को इसमें आने का आमंत्रण दिया।

स्वामी सहजानंद सरस्वती को जानें

स्वामी सहजानंद सरस्वती का जन्म महाशिवरात्रि के दिन 22 फरवरी 1889 को उत्तरप्रदेश के गाजीपुर जिला अंतर्गत देवा गांव में एक सामान्य किसान बेनी राय के घर हुआ था।

माता-पिता ने बड़े प्यार से इनका नाम नौरंग राय रखा। तब कौन जानता था कि यह नन्हा बालक बड़ा होआकर कुछ ऐसा कर दिखाएगा, जिसके लिए लोग उन्हें हमेशा याद करते रहेंगे। बालक नौरंग राय जब तीन साल के थे तो उनकी मां का निधन हो गया। संयुक्त परिवार था, सो उनकी चाची ने मां का दायित्व संभाला।

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9 बर्ष की उम्र में पिता ने उनका नामांकन जलालाबाद के एक मदरसे में करा दिया। वे पढ़ने में इतने मेधावी निकले कि 12 बर्ष की उम्र में में ही उन्होंने लोअर और अपर प्राइमरी स्तर की शिक्षा सिर्फ 3 साल में पूरी कर ली। 1904 में मिडिल स्कूल की परीक्षा में पूरे उत्तर प्रदेश में नौरंग राय ने 6ठा स्थान प्राप्त किया। सरकार की ओर से उन्हें छात्रवृत्ति मिलने लगी।

इसी दौरान 1905 में पिता ने अपने इस पुत्र में वैराग्य का लक्षण देखा तो 16 बर्ष की अवस्था में इनका विवाह करा दिया। विवाह के एक साल पूरा होते -होते उनकी पत्नी का देहांत हो गया‌ और किशोर नौरंग राय के पग वैराग्य के पथ पर बढ चले। एक दिन चुपचाप वे घर से निकल कर काशी पहुंचे गए और वहां स्वामी अच्युतानंद से दीक्षा लेकर दंड धारण कर बन गए स्वामी सहजानंद सरस्वती और निकल पड़े मानव मुक्ति की राह तलाश करने।

स्वामी सहजानंद सरस्वती के 134वें जयंती पर भूमिहार ब्राह्मण एकता मंच कर रही भव्य कार्यक्रम, 24 फरबरी को पटना चलें

जन्म और जरा-मरण से मुक्ति नहीं, शोषण-उत्पीडन, अन्याय-अत्याचार और अंधविश्वास से धरापुत्र किसान-मजदूरों की मुक्ति की तलाश में। स्वतंत्रता सेनानी, सन्यासी, किसान नेता सहजानंद सरस्वती का सम्पूर्ण जीवन इसी किसान आंदोलनों के लिए समर्पित रहा। उनके जन्ममदिन महाशिवरात्रि पर उनको याद करते हुए उनकी विचारधारा पर गौर करना आवश्यक प्रतीत हो रहा है।

भूमिहार ब्राह्मण महासभा का गठन

आज स्वामी सहजानंद सरस्वती को एक जाति विशेष (भूमिहार) के दायरे में बांधने में लोग चुकते नहीं। ऐसा इसलिए कि उनके सार्वजनिक जीवन की शुरुआत भूमिहार ब्राह्मण महासभा से हुई थी। 1914 में उन्होंने भूमिहार ब्राह्मण महासभा का गठन किया था। 1915 में ‘ भूमिहार ब्राह्मण ‘ पत्र का प्रकाशन शुरू किया इसपर पुस्तकें लिखीं। तबतक वे सक्रिय राजनीति में नहीं आए थे। राजनीति में वे तब आए जब 1920 में 5 दिसंबर को पटना में उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई।

बिहार प्रांतीय किसान सभा का स्थापना

फिर वे असहयोग आंदोलन में सक्रिय हुए और जेल गए। यह सब करते हुए स्वामी जी ने स्थितियों को बारीकी से समझा और 1929 में भूमिहार ब्राह्मण महासभा को भंग कर बिहार प्रांतीय किसान सभा की स्थापना की और उसके प्रथम अध्यक्ष बनाए गए । यहीं से शुरू हुआ उनका किसान आंदोलन। अपने स्वजातीय भूमिहार जमींदारों के खिलाफ भी स्वामी जी ने आंदोलन का बिगुल फूंका।

उनका मानना था कि यदि हम किसानों, मजदूरों और शोषितों के हाथ में शासन सूत्र लाना चाहते हैं तो इसके लिए क्रांति आवश्यक है। क्रांति से उनका आशय व्यवस्था परिवर्तन से था। शोषितों का राज्य बिना क्रांति के सम्भव नहीं और क्रांति के लिए राजनीतिक शिक्षण जरूरी है। किसान मजदूरों को राजनीतिक रूप से सचेत करने की जरूरत है ताकि व्यवस्था परिवर्तन हेतु आंदोलन के दौरान वे अपने वर्ग शत्रु की पहचान कर सकें। इसके लिए उन्हें वर्ग चेतना से लैस होना होगा।

यह काम बिना राजनीतिक चेतना के सम्भव नहीं होने वाला है। हजारीबाग केन्द्रीय कारा में रहते हुए उन्होंने एक पुस्तक लिखी –‘ किसान क्या करें ।’ इस पुस्तक में 7 अध्याय हैं।

  1. खाना-पीना सीखें
  2. आदमी की जिंदगी जीना सीखें
  3. हिसाब करें और हिसाब मांगें
  4. डरना छोड़ दें
  5. लड़ें और लड़ना सीखें
  6. भाग्य और भगवान पर न भूलें
  7. वर्ग चेतना प्राप्त करें

स्वामी जी ने बड़े करीब से देखा कि किसान की हाडतोड मेहनत का फल किस तरह से जमींदार, साहुकार, बनिए, महाजन, प़ंडा-पुरोहित, साधु, फ़कीर, ओझा-गुणी, चूहे यहां तक कि कीड़े, मकोडे, पशु-पक्षी तक गटक जाते हैं। वे अपनी इस पुस्तक में बड़ी सरलता से इन स्थितियों को दर्शाते हुए किसानो को समझाते हैं कि वे जो उत्पादन करते हैं, उसपर पहला हक उनके बाल बच्चे और परिवार का है। उन्हें ऐसी स्थाति से मुक्त होना पड़ेगा जो उन्हें अधपेटे, अधनंगे रहने को मजबूर करती है।

उन्होने नारा दिया था ‘जो अन्न, वस्त्र उपजाएगा, अब सो कानून बनाएगा यह भारतवर्ष उसी का है, शासन वहीं चलाएगा।’ वे अक्सर कहा करते थे कि जीवन का उद्देश्य होना चाहिए स्वाभिमान के साथ जीना और आत्म सम्मान बनाए रखना।किसान यदि अपने को इंसान समझेगा, तभी वह इंसान की तरह जी सकेगा। यही चाहत उसे मानवोचित अधिकार हासिल करने के लिए आवाज उठाने को प्रेरित करेगी।

हमारे देश में आजादी के बाद से आज तक किसानों की दशा लगातार बंद से बद्तर होती जा रही है।खेती किसानी के अलाभकर हो जाने से लाखों की संख्या में किसान आत्महत्या करने को मजबूर हुए हैं। गांव के युवा खेती से विस्थापित होकर जीविकोपार्जन हेतु महानगरों की ओर पलायन कर रहे हैं।

दूसरी तरफ पूंजीवादी राजसत्ता सम्पोषित पूंजीपतियों का मुनाफा आसमान की बुलंदी छू रहा है।इसकी ओर आगाह करते हुए स्वामी सहजानंद सरस्वती ने काफी पहले अविराम संघर्ष का उद्घोष करते हुए कहा था कि यह लड़ाई तबतक जारी रहनी चाहिए जबतक शोषक राजसत्ता का खात्मा न हो जाए। इस लड़ाई में वे नारी शक्ति को भी शामिल करने के पक्षधर थे।

आज शोषणमूलक पूंजीवादी राजसत्ता के मैनेजर, विभिन्न राजनीतिक दल जिस तरह से किसानों की समस्याओं पर घडियाली आंसू बहाते हुए किसान मुक्ति आंदोलन को लक्ष्य से भटकाने का काम कर रहे हैं, उसे देखते हुए स्वामी जी के किसान आंदोलन सम्बंधी विचारों से सीख लेकर पूंजीवाद विरोधी समाजवादी आंदोलन को उसके मुकाम तक पहुंचाने की जरूरत है। यही स्वामी जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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